________________
जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी इच्छा करते हैं। और उनके संकल्पों में फूलों-सी नाजुकता भले ही हो, मगर रेशम-सी दृढ़ता भी होती है।
हमारी चरितनायिका सज्जनकुमारी जी ऐसे ही शुभ-संस्कारों से सम्पन्न महान आत्मा हैं, तभी तो उन्होंने ६ वर्ष की अल्पायु में ही अपने पिता श्री गुलाबचन्द जी सा. लूणिया के सम्मुख दीक्षा लेने की इच्छा प्रगट की थी।
श्रीमान गुलाबचन्दजी लूणिया धर्मनिष्ठ और श्रेष्ठ विवेकवान थे। वे जैन तत्त्व ज्ञान के गम्भीर ज्ञाता भी थे और कवि मानस भी थे। इसलिए उनके हृदय में गम्भीरता के साथ सुकुमारता और कल्पनाशीलता भी थी । वे एक संवेदनशील पिता ही नहीं भावुक कवि और संगीतकार भी थे । इस कन्या को वे लक्ष्मी सरस्वती का संयुक्त अवतार समझते थे। इसलिए एक खास मानसिक सम्मान था उनका सज्जन के प्रति । साथ ही अपनी इकलौती पुत्री के प्रति उन्हें विशेष मोह था। फिर इस मोह का एक विशेष कारण भी था कि अनेक मनौतियों और कई वर्षों की प्रतीक्षा के बाद उन्हें इस कन्या-रत्न की उपलब्धि हई थी और इसी के कारण उनके जीवन की सूखी बगिया में बहार आई थी, खुशी के फूल खिले थे । ऐसी प्रिय कलेजे की कोर पुत्री के मुख से दीक्षा की बात सुनकर उनका मुख-कमल मुरझा गया, मानस उद्वेलित हो गया, उनके स्मृति-पट पर विगत-जीवन धारावाहिक चलचित्र के समान नाचने लगा।
गुलाब-सा सुरभित जीवन : श्री गुलाबचंद जी लूनिया निवास-नगर- राजस्थान का गुलाबी नगर जयपुर जिसका देश के इतिहास में विशिष्ट स्थान है । मुगल बादशाहों ने भी इस नगर के शासकों और व्यापारियों को विशेष सम्मान दिया, प्रामाणिक माना तथा ब्रिटिश शासकों के समय भी व्यापारियों ने अपनी प्रामाणिकता को अक्षुण्ण रखा।
___ इसी नगर को जवाहरात के व्यापार में विशिष्ट गौरव प्राप्त था। यहाँ के जौहरी प्रामाणिक, रत्नों के सच्चे पारखी और व्यवहारकुशल माने जाते रहे । बोली के मीठे, स्वभाव के मधुर व चतुर कुशल व्यापारी गुलाबी नगरी के गौरव थे।
इन जौहरियों में जैन धर्मानुयायिकों की संख्या अधिक थी। वैसे भी जयपुर नगर में जैनों का निवास विशेष रूप से रहा है।
इन्हीं में जैन श्रावक गुलाबचन्द जी लूनिया भी थे। आप जवाहरात के व्यापारी थे। आप अपने व्यापार में तो दक्ष थे ही, बहुत धर्मनिष्ठ, सच्चरित्र, सदाचारी भी थे। अपनी गुलाबी मुस्कराहट से आपने जन-जन के हृदय में अपना स्थान बना लिया था। अपने हंसमुख स्वभाव और व्युत्पन्नमति के कारण आप लोकप्रिय हो गये थे, सभी आपको सम्मान देते थे। वैभव के बीच आपका जीवन सदाचारपूर्ण और धर्मनिष्ठ था । आप बारह व्रतधारी श्रावक थे।
स्वाध्यायनिष्ठा-स्वाध्याय आपके जीवन का अंग था। अनेक ग्रन्थों के गंभीर अध्ययन के परिणामस्वरूप साम्प्रदायिकता की भावना आपके हृदय से निकल गयी थी। यद्यपि आप तेरापंथी समाज के प्रमुख श्रावक थे, फिर भी धार्मिक मामलों में उदार और व्यापक दृष्टि रखते थे।
वंश परिचय के लिए लूनिया वंशावलि देखें ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org