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से हो रही है, उसमें खुद 'राग-द्वेष से, करना है, नहीं करना है, अच्छा है, खराब है', ऐसे दखल करता है, उससे प्रकृति असहज होती है। यदि 'देखने वाले' रहो तो प्रकृति का अच्छा-खराब होता ही नहीं, 'देखने वाला' हुआ इसलिए ज्ञानी हुआ।
प्रकृति के उदय में चंदू भाई तन्मयाकार रहेंगे, उसे हमें जानना है। उससे प्रकृति के नुकसान की भरपाई अपने आप ही हो जाएगी। अभी, कभी-कभी अजागृति से दखल हो जाता है, उसे प्रज्ञा में बैठकर जानना है कि यह असहज हुआ, तो धीरे-धीरे अंत में सहज होता जाएगा।
यदि प्रकृति सहज हो जाए तो बाहर का भाग भी लोगों को भगवान जैसा दिखाई देता है। सहज क्षमा, नम्रता, सरलता, संतोष, किसी भी प्रकार की बाहर की किसी भी चीज़ का असर नहीं, पोतापणुं नहीं रहता, ऐसे गुण उत्पन्न हो जाते हैं।
[4] आज्ञा का पुरुषार्थ, बनाता है सहज ज्ञान मिलने के बाद लक्ष निरंतर रहता है, वह सहज आत्मा हो गया कहा जाता है। अब मन-वचन-काया सहज करने के लिए, जैसेजैसे आज्ञा का पालन होता जाएगा वैसे-वैसे मन-वचन-काया सहज होते जाएँगे। ये जो पाँच आज्ञा हैं, वे सहज बनाने वाली हैं। क्योंकि जितना आज्ञा में रहा उतना खुद का दखल खत्म हो गया और तभी से प्रकृति सहज होने लगती है।
यह चंदूभाई अलग और आप शुद्धात्मा अलग हो वह जागृति रहनी चाहिए। खुद शुद्धात्मा में रहे और सामने वाले को भी शुद्ध रूप से देखे, वह शुद्ध उपयोग रखा कहलाता है।
घर के व्यक्तियों में अगर 'शुद्धात्मा' देखेंगे तो उसका असर होगा और दृष्टि में ऐसा रखेंगे कि यह तो ऐसा है, वैसा है तो उसका अलग असर होगा।
स्टेशन जाने पर पता चलता है कि गाडी लेट है, थोडी देर बाद पता चलता है कि अभी और आधा घंटा लेट है, तब प्रकृति अज्ञानता के
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