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प्रमाण-नय-तत्वालोक ] (१०)
विवेचन - प्रकाशवान पदार्थों में दो श्रेणियां देखी जाती हैं(१) प्रथम श्रेणी में वे हैं जो अपने आपको प्रकाशित नहीं करते, सिर्फ दूसरे पदार्थों को प्रकाशित करते हैं, जैसे नेत्र । (२) दूसरी श्रेणी उनकी है जो अपने आपको भी प्रकाशित करते हैं और दूसरों को भी प्रकाशित करते हैं, जैसे सूर्य । ज्ञान भी प्रकाशवान पदार्थ है अतः यह प्रश्न उपस्थित होता है कि ज्ञान प्रथम श्रेणी में है या दूसरी श्रेणी में ? इस सूत्र में इसी प्रश्न का समाधान किया गया है ।
मीमांसक और नैयायिक मत के अनुसार ज्ञान प्रथम श्रेणी में है - वह घट आदि दूसरे पदार्थों को जानता है पर अपने आपको नहीं जानता । जैन दर्शन के अनुसार ज्ञान अपने-आपको भी जानता है और दूसरे पदार्थों को भी जानता है ।
जब हम हाथी के बच्चे को जानते हैं, तब केवल हाथी के बच्चे का ही ज्ञान नहीं होता, वरन् 'मैं' इस कर्त्ता का भी ज्ञान होता है, 'जानता हूँ' इस क्रिया का भी ज्ञान होता है और 'अपने ज्ञान से' इस करण रूप ज्ञान का भी ज्ञान होता है ।
स्व-व्यवसाय का दृष्टान्त
कः खलु ज्ञानस्यालम्बनं बाह्य प्रतिभातमभिमन्यमानस्तदपि तत्प्रकारं नाभिमन्येत ? मिहिरालोकवत् ॥१७॥
अर्थ — कौन ऐसा पुरुष है जो ज्ञान के विषयभूत बाह्य पदार्थ को जाना हुआ माने किन्तु ज्ञान को जाना हुआ न माने ? सूर्य आलोक की तरह ।