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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक
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() विपरीतव्यतिरेक दृष्टान्ताभास अनित्यः शब्दः कृतकत्वात् , यत्कृतकं तन्नित्यं यथाऽऽकाशम् , इति विपरीतव्यतिरेकः ॥ ७९ ॥
अर्थ-शब्द अनित्य है क्योंकि कृतक है । जो कृनक होता है वह नित्य होता है, जैसे आकाश । यहाँ आकाश दृष्टान्त विपरीतव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है क्योंकि यहाँ व्यतिरेक व्याप्ति विपरीत बताई गई है। अर्थात् साध्य के अभाव में साधन का अभाव बताना चाहिए सो साधन के अभाव में साध्य का अभाव बता दिया है।
उपनयाभास और निगमनाभास
उक्तलक्षणोल्लङ्घनेनोपनयनिगमनयोर्वचने तदाभासौ।८०।
यथा परिणामी शब्दः कृतकत्वात् , यः कृतकः स परिणामी यथा कुम्भः, इत्यत्र परिणामी च शब्दः कृतकश्च कुम्भ इति च ॥ ८१॥
तस्मिन्नेव प्रयोगे तस्मात् कृतकः शब्द इति, तस्मात् परिणामी कुम्भ इति ॥ ८२॥
अर्थ-उपनय और निगमन का पहले जो लक्षण कहा गया है उसका उल्लंघन करके उपनय और निगमन बोलने से उपनयाभास और निगमनाभास हो जाते हैं।
उपनयाभास का उदाहरण-शब्द परिणामी है, क्योंकि