Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 158
________________ (१४६) [सातवाँ परिच्छेद भी पदार्थ किसी भी शब्द से कहा जा सकेगा। इस अव्यवस्था का निवारण करने के लिए यही मानना उचित है कि जिस शब्द से जिस क्रिया का भान हो उस क्रिया की विद्यमानता में ही उस शब्द का प्रयोग किया जाय । अन्य समयों में उस शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता। अर्थनय और शब्दनय का विभाग एतेषु चत्वारःप्रथमेऽर्थनिरूपणप्रवणत्वादर्थनयाः॥४४॥ शेषास्तु त्रय शब्दवाच्यार्थगोचरतया शब्दनयाः॥४॥ अर्थ-इन सातों नयों में पहले के चार नय पदार्थ का निरूपण करने वाले हैं इसलिए वे अर्थनय हैं । अन्तिम तीन नय शब्द के वाच्य अर्थ को विषय करने वाले हैं इस कारण उन्हें शब्दनय कहते हैं । विवेचन-नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र, पदार्थ का प्ररूपण करते हैं इसलिए उन्हें अर्थनय कहा गया है और शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत-यह तीन नय, किस शब्द का वाच्य क्या होता है-यह निरूपण करते हैं, इसलिए यह शब्द नय कहलाते हैं। नयों के विषय में अल्पबहुत्व पूर्वो पूर्वो नयः प्रचुरगोचरः, परः परस्तु परिमितविषयः ॥ ४६॥ . अर्थ-सात नयों में पहले-पहले के नय अधिक-अधिक विषय वाले हैं और पिछले-पिछले कम विषय वाले हैं।

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