Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 157
________________ प्रमाण-नय-तत्वालोक ] (१४८) पाचक कहा जा सकता है, अन्य समय में नहीं । यही भाव इन्द्र, शक्र और पुरन्दर शब्दों के उदाहरण से समझाया गया है । इस दृष्टिकोण को एवंभूत नय कहते हैं । एवम्भूत नयाभास क्रियाग्नाविष्टं वस्तु शब्दवाच्यतया प्रतिक्षिपंस्तु तदा भासः ॥ ४२ ॥ यथा - विशिष्ट चेष्टाशून्यं घटाख्यं वस्तु न घटशब्दवाच्यं घटशब्दप्रवृत्तिनिमित्तभूतक्रियाशून्यत्वात्, पटवदित्यादिः ॥ ४३ ॥ , अर्थ - क्रिया से रहित वस्तु को उस शब्द का वाच्य मानने का निषेध करने वाला अभिप्राय एवंभूत नयाभास है । जैसे - विशेष प्रकार की चेष्टा से रहित घट नामक वस्तु, घट शब्द का वाच्य नहीं है क्योंकि वह घट शब्द की प्रवृत्ति का कारण रूप क्रिया से रहित है, जैसे पट - आदि || विवेचन- एवंभूत नय अमुक क्रिया से युक्त पदार्थ को ही उस क्रिया वाचक शब्द से अभिहित करता है, किन्तु अपने से भिन्न कोण का निषेध नहीं करता । जो दृष्टिकोण एकान्त रूप से क्रिया-युक्त पदार्थ को ही शब्द का वाच्य मानने के साथ, उस क्रिया से रहित वस्तु को उस शब्द के वाच्य होने का निषेध करता है वह एवंभूत नयाभास है । एवंभूत नयाभास का दृष्टिकोण यह है कि अगर घटन क्रिया न होने पर भी घट को घट कहा जाय तो पट या अन्य पदार्थों को भी घट कह देना अनुचित न होगा । फिर तो कोई

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