Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 164
________________ (१५५) [सातवाँ परिच्छेद मुक्ति का स्वरूप तस्योपात्तपुंस्त्रीशरीरस्य सम्यग्ज्ञानक्रियाभ्यां कृत्स्नकर्मक्षयस्वरूपा सिद्धिः॥ ५७ ॥ ___ अर्थ-पुरुष का शरीर या स्त्री का शरीर पाने वाले आत्मा कोसम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र से, समस्त कर्म-क्षय रूप मुक्ति प्राप्त होती है। विवेचन-आत्मा पुरुष या खी का शरीर पाकर सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र के द्वारा ज्ञानावरण आदि आठों कर्मों का पूर्ण रूप से क्षग्न करता है। इसी को मुक्ति कहते हैं। यहाँ 'स्त्री का शरीर' कह कर स्त्रीमुक्ति का निषेध करने वाले दिगम्बर सम्प्रदाय का निरास किया गया है । कोई लोग अकेले ज्ञान से मुक्ति मानते हैं, कोई अकेली क्रिया से मुक्ति मानते हैं। उनका खंडन करने के लिए ज्ञान और क्रिया-दोनों का ग्रहण किया है। - सम्यग्दर्शन भी मोक्ष का कारण है किन्तु वह सम्यग्ज्ञान का सहचर है, जहाँ सम्यग्ज्ञान होगा वहाँ सम्यग्दर्शन अवश्य होगा। इसीलिये यहाँ सम्यग्दर्शन को अलग नहीं बताया है।

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