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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक ] (१६२)
वादी प्रतिवादी का लक्षण
प्रारम्भकप्रत्यारम्भकावेव मल्लप्रतिमल्लन्यायेन वादिप्रतिवादिनौ ॥ १६ ॥
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अर्थ – मल्ल र प्रतिमल्ल की भाँति प्रारम्भक और प्रत्यारम्भक क्रम से वादी और प्रतिवादी कहलाते हैं ।
बादी- प्रतिवादी का कर्त्तव्य
प्रमाणतः स्वपक्षस्थापनप्रतिपक्षप्रतिक्षे पावनयोः कर्म ॥
अर्थ - प्रमाण से अपने पक्ष की स्थापना करना और विरोधी पक्ष का खण्डन करना वादी और प्रतिवादी का कर्त्तव्य है ।
विवेचन केवल अपने पक्ष की स्थापना कर देने से या केवल विरोधी पक्ष का खण्डन कर देने से तत्त्व का निर्णय नहीं होता । अतः तत्त्वनिर्णय के लिए दोनों को दोनों कार्य करना चाहिए। सभ्यों का लक्षण
वादिप्रतिवादिसिद्धान्ततत्त्वनदीष्णत्व - धारणा - बाहुश्रुत्यप्रतिभा- क्षान्ति- माध्यस्थैरुभयाभिमताः सभ्याः ॥ १८ ॥
अर्थ - जो वादी और प्रतिवादी के सिद्धान्त-तत्त्व में कुशल हों; धारणा, बहुश्रुतता, प्रतिभा, क्षान्ति और मध्यस्थता से युक्त हों तथा वादी और प्रतिवादी द्वारा स्वीकार किये गये हों, ऐसे विद्वान् सभ्य होते हैं ।