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प्रमाण -नय-तत्वालोक
(१६४)
अर्थ - वादी, प्रतिवादी और सभ्यों के कथन का निश्चय करना, तथा कलह मिटाना आदि सभापति के कर्त्तव्य हैं ।
विवेचन - वादी प्रतिवादी और सभ्यों के कथन का निश्चय करना तथा बादी और प्रतिवादी में अगर कोई शर्त हुई हो तो उसे पूर्ण कराना अथवा पारितोषिक वितरण करना सभापति का कर्त्तव्य है ।
वादी प्रतिवादी के बोलने का नियम
सजिगीषुकेऽस्मिन् यावत्सभ्यापेक्षं स्फूर्ती वक्तव्यम् ॥२२॥
अर्थ- जब जिगीषु का जिगीषु के साथ वाद हो तो हिम्मत होने पर जब तक सभ्य चाहें तब तक बोलते रहना चाहिये ।
विवेचन - जब तक वादी प्रतिवादी में से कोई एक स्वपक्षसाधन और परपक्ष-दूषण करने में असमर्थ नहीं होता तब तक किसी विषय का निर्णय नहीं होता । इस अवस्था में वादी प्रतिवादी को अपना-अपना वक्तव्य चालू रखना चाहिये । जब सभ्य बोलने का निषेध करदें तब बंद कर देना चाहिए। यह जिगीषु-वाद के लिए है । उभयोस्तत्त्वनिर्णिनीषुत्वे यावत्तत्त्वनिर्णयं यावत्स्फूर्ति च वाच्यम् ॥ २३ ॥
अर्थ- दोनों वादी प्रतिवादी यदि तत्त्वनिर्णिनीषु हों तो तत्त्व का निर्णय होने तक उन्हें बोलना चाहिए । अगर तत्त्व निर्णय न हो पावे और वादी या प्रतिवादी को आगे बोलना न सूझ पड़े तो जब तक सूझ पड़े तब तक बोलना चाहिए ।