Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 160
________________ [ सातवाँ परिच्छेद थोड़े से सत् पदार्थों को विषय करने वाले व्यवहार नय की अपेक्षा, समस्त सत् पदार्थों को विषय करने वाला संग्रहनय अधिक विषय वाला है। वर्तमान क्षणवर्ती पर्याय मात्र को विषय करने वाले ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा त्रिकालवर्ती पदार्थ को विषय करने वाला व्यववहारनथ अधिक विषय वाला है। काल आदि के भेद से पदार्थ में भेद बताने वाले शब्दनय की अपेक्षा, काल आदि का भेद होने पर भी अभिन्न अर्थ बताने वाला ऋजुसूत्रनय अधिक विषय वाला है। पर्यायवाची शब्द के भेद से पदार्थ में भेद मानने वाले समभिरूढ़नय की अपेक्षा, पर्यायवाची शब्द का भेद होने पर भी पदार्थ में भेद न मानने वाला शब्दनय अधिक विषय वाला है । क्रिया के भेद से अर्थ में भेद मानने वाले एवंभूतनय की अपेक्षा, क्रिया-भेद होने पर भी अर्थ में भेद न मानने वाला समभिरूढ़नय अधिक विषय वाला है। विवेचन-सातों नयों में उत्तरोत्तर सूक्ष्मता किस प्रकार आती गई है, यह क्रम यहाँ बताया है । नैगम-नय सत्ता और असत्ता दोनों को विषय करता है, संग्रहनय केवल सत्ता को विषय करता है, व्यवहार थोड़े से सत् पदार्थों को विषय करता है, ऋजुसूत्रनय वर्त्तमान क्षणवर्ती पर्याय को ही विषय करता है, शब्दनय काल, कारक आदि का भेद होने पर पदार्थ में भेद मानता है, समभिरूढ़ नय काल आदि का भेद न होने पर भी शब्द-भेद से ही पदार्थ में भेद मानता है और एवंभूत नय क्रिया के भेद से ही

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