Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 156
________________ (१४७) [सातवाँ परिच्छेद है समभिरूढ़ नयाभास पर्यायवाचक शब्दों के अर्थ में रहने वाले अभेद का निषेध करके एकान्त भेद का ही समर्थन करता है। इस. लिये यह नयाभास है। एवंभूत नय शब्दानां स्वप्रवृत्तिनिमित्तभूतक्रियाऽऽविष्टमर्थ वाच्यत्वेनाभ्युपगच्छन्नेवंभूतः ॥ ४० ॥ यथा-इन्दनमनुभवनिन्द्रः शकनक्रियापरिणतः शक्रः, पूरणप्रवृत्तः पुरन्दर इत्युच्यते ॥ ४१ ॥ . अर्थ-शब्द की प्रवृत्ति की निमित्त रूप क्रिया से युक्त पदार्थ को उस शब्द का वाच्य मानने वाला नय एवंभूत नय है ॥ जैसे–इन्दन (ऐश्वर्य-भोग ) रूप क्रिया के होने पर ही इन्द्र कहा जा सकता है, शकन ( सामर्थ्य ) रूप क्रिया के होने पर ही शक्र कहा जा सकता है और पूर्दारण ( शत्रु नगर का नाश) रूप क्रिया के होने पर ही पुरन्दर कहा जा सकता है। विवेचन-एवंभूत नय वह दृष्टिकोण है जिसके अनुसार प्रत्येक शब्द क्रियाशब्द ही है । प्रत्येक शब्द से किसी न किसी क्रिया का अर्थ प्रकट होता है । ऐसी अवस्था में; जिस शब्द से जिस क्रिया का भाव प्रकट होता हो, उस क्रिया से युक्त पदार्थ को उसी समय उस शब्द से कहा जा सकता है। जिस समय में वह क्रिया, विद्यमान न हो उस समय उस क्रिया का सूचक शब्द प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। जैसे पाचक शब्द से पकाने की क्रिया का बोध होता है, अतएव जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु को पका रहा हो तभी उसे

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