Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 154
________________ (१४५) [सातवाँ परिच्छेद जैसे-सुमेरु था, सुमेरु है और सुमेरु होगा, इत्यादि भिन्न कालवाचक शब्द सर्वथा भिन्न पदार्थों का कथन करते हैं, क्योंकि वे भिन्न कालवाचक शब्द हैं; जैसे भिन्न पदार्थों का कथन करने वाले दूसरे भिन्नकालीन शब्द अर्थात् अगच्छत, भविष्यति और पठति आदि ॥ विवेचन-काल का भेद होने से पर्याय का भेद होता है फिर भी द्रव्य एक वस्तु बना रहता है। शब्द नय पर्याय-दृष्टि वाला है अतः वह भिन्न-भिन्न पर्यायों को ही स्वीकार करता है, द्रव्य को गौण करके उसकी उपेक्षा करता है। परन्तु शब्दनयाभास विभिन्न कालों में अनुगत रहने वाले द्रव्य का सर्वथा निषेध करता है । इसीलिए यह नयाभास है। समभिरूढ नय पर्यायशब्दषु निरुक्तिभेदेन भिन्नमर्थ समभिरोहन समभिरूढः ॥ ३६ ॥ . . . इन्दनादिन्द्रः, शकनाच्छकः, पूर्दारणाद् पुरन्दर इत्यादिषु यथा ॥ ३७॥ अर्थ-.-पर्यायवाचक शब्दों में निरुक्ति के भेद से अर्थ का भेद मानने वाला समभिरूढ़ नय कहलाता है। . जैसे-ऐश्वर्य भोगने वाला इन्द्र है, सामर्थ्य वाला शक्र है और शत्रु-नगर का विनाश करने वाला पुरन्दर, कहलाता है। विवेचन-शब्दनय काल आदि के भेद से पदार्थ में भेद मानता है पर समभिरूढ़ उससे एक कदम आगे बढ़कर काल आदि

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