Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 153
________________ प्रमाण-नय-तत्वालोक ] (१४४) शब्दनय कालादिभेदेन ध्वनेरर्थभेदं प्रति वद्यमानः शब्दः ||३२|| यथा बभूव भवति भविष्यति सुमेरुरित्यादिः ||३३॥ अर्थ - काल आदि के भेद से शब्द के वाच्य अर्थ में भेद मानने वाला नय शब्दनय कहलाता है | जैसे - सुमेरु था, सुमेरु है, और सुमेरु होगा ॥ कार विवेचन - शब्दनय और आगे के समभिरूढ़ तथा एवंभूत नय शब्द को प्रधान मानकर उसके वाच्य अर्थ का निरूपण करते हैं इसलिए इन तीनों को शब्दनय कहते हैं । काल, कारक, लिंग और वचन के भेद से पदार्थ में भेद मानने वाला नय. शब्दनय कहलाता है । उदाहरणार्थ - सुमेरु था, सुमेरु है और सुमेरु होगा; इन तीन वाक्यों में एक सुमेरु का त्रिकाल सम्बन्धी अस्तित्व बताया गया है, पर यहाँ काल का भेद है, अतः शब्द नय सुमेरु को तीन रूप स्वीकार करता है । शब्दनयाभास तद्भेदेन तस्य तमेव समर्थयमानस्तदाभासः ॥ ३४ ॥ यथा बभूव भवति भविष्यति सुमेरुरित्यादयो भिन्नकालाः शब्दा भिन्नमेवार्थमभिदधति, भिन्न कालशब्दत्वात्, ताडसिद्धान्यशब्दवदित्यादि ॥ ३५ ॥ अर्थ - काल आदि के भेद से शब्द के वाच्य पदार्थ में एकांत भेद मानने वाला अभिप्राय शब्दनयाभास है ।।.

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