Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 151
________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (१४२) कूल, सामान्य में भेद करना व्यवहार नय का कार्य है। उदाहरणार्थसंग्रहनय ने सत्ता रूप अभेद माना, व्यवहार उसके दो भेद करता है-द्रव्य और पर्याय। ___न्यवहारनयाभास यः पुनरपारमार्थिकद्रव्यपर्यायविभागमभिप्रैति स व्यवहाराभासः ॥ २५ ॥ यथा-चार्वाकदर्शनम् ॥ २६॥ . अर्थ-जो नय द्रव्य और पर्याय का अवास्तविक भेद स्वीकार करता है वह व्यवहारनयाभास है। जैसे-चार्वाक दर्शन ॥ विवेचन-द्रव्य और पर्याय का वास्तविक भेद मानना व्यवहार नय है और मिथ्या भेद मानना व्यवहारनयाभास है । चार्वाक दर्शन वास्तविक द्रव्य और पर्याय के भेद को स्वीकार नहीं करता किन्तु अवास्तविक भूत-चतुष्टय को स्वीकार करता है। अतः चार्वाक दर्शन (नास्तिक मत) व्यवहार नयाभास है। पर्यायार्थिकनय के भेद पर्यायार्थिकश्चतुर्दा-ऋजुसूत्रः शब्दः समभिरूढ एवंभूतश्च ॥ २७॥ अर्थ-पर्यायार्थिकनय चार प्रकार का है-(१) ऋजुसूत्र (२) शब्द (३) समभिरूढ़ और (४) एवंभून । ऋजुसूत्रनय . . .... ऋजु-वर्तमानक्षणस्थायि पर्यायमात्रं प्राधान्यतः सूत्रयन्नभिप्रायः ऋजुसूत्रः ॥ २८ ॥

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