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[ सातवाँ परिच्छेद
अर्थ- द्रव्यत्व आदि अपरसामान्यों को स्वीकार करने वाला और उनके भेदों का निषेध करने वाला अभिप्राय अपरसंग्रह - नयाभास है ।
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जैसे -- द्रव्यत्व ही वास्तविक है, उससे भिन्न धर्म आदि द्रव्य उपलब्ध नहीं होते ।।
विवेचन - द्रव्यत्व आदि सामान्यों को अपर संग्रहनय स्वीकार करता है पर वह उनके भेदों का धर्म आदि द्रव्यों का निषेध नहीं करता; यह अपरसंग्रह नयाभास अपर सामान्य के भेदों का निषेध करता है, इसलिए नयाभास है ।
व्यवहारनय
संग्रहेण गोचरीकृतानामर्थानां विधिपूर्वकमवहरणं येनाभिसन्धिना क्रियते स व्यवहारः ॥ २३ ॥
यथा यत् सत् तद् द्रव्यं पर्यायो वा ॥ २४ ॥
अर्थ - संग्रह नय के द्वारा जाने हुए सामान्य रूप पदार्थों में विधिपूर्वक भेद करने वाला नय व्यवहार नय कहलाता है ।
जैसे- जो सत् होता है वह या तो द्रव्य होता है या पर्याय ।।
विवेचन – संग्रहनय द्वारा विषय किये हुए सामान्य में व्यवहार नय भेद करता है । सामान्य से लोक व्यवहार नहीं होता । लोकव्यवहार के लिये विशेषों की आवश्यकता होती है । 'गोत्व' सामान्य दुहा नहीं जा सकता और न 'अश्वत्व' सामान्य पर सवारी की जा सकती है | दुहने के लिये गाय - विशेष की आवश्यकता है और सवारी के लिए श्व-विशेष की अपेक्षा होती है । अतः लोक व्यवहार के अनु