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[ सातवाँ परिच्छेद
विश्वमेकं सदविशेषादिति यथा ।। १६ ।।
अर्थ -- समस्त विशेषों में उदासीनता रखने वाला और शुद्ध सत्ता मात्र द्रव्य को विषय करने वाला नय पर संग्रहनय कहलाता है ।
जैसे - सत्ता सब में पाई जाती है अतः विश्व एक रूप है ।।
विवेचन — पर सामान्य को सत्ता या महासत्ता कहते हैं । उसी को पर संग्रहनय विषय करता है । सत्ता सामान्य की अपेक्षा विश्व एक रूप है; क्योंकि विश्व का कोई भी पदार्थ सत्ता मे भिन्न नहीं है ।
परसंग्रहाभास
सत्ताद्वैतं स्वीकुर्वाणः सकलविशेषान्निराचक्षाणस्तदाभासः ॥ १७ ॥
सत्चैव तत्त्वं, ततः पृथग्भूतानां विशेषाणामदर्शनात् ॥ १८
क
वाला और घट पर संग्रह नया
अर्थ - एकान्त सत्ता मात्र को स्वीकार करने आदि सब विशेषों का निषेध करने वाला अभिप्राय भास है ।
जैसे - सत्ता ही वास्तविक वस्तु है, क्योंकि उस से भिन्न घट आदि विशेष दृष्टिगोचर नहीं होते ।।
विवेचन – पर संग्रह नय भी सत्ता मात्र को ही विषय करता हैं और परसंग्रह नयाभास भी सत्तामात्र को ही विषय करता किन्तु दोनों में भेद यह है कि परसंग्रह विशेषों का निषेध नहीं करता - उनमें उपेक्षा बतलाता है और परसंग्रहाभास उनका निषेध करता है