________________
(१३७)
[सातवाँ परिच्छेद
करना और दूसरे धर्म की गौण रूप से विवक्षा करना, इसी प्रकार दो द्रव्यों में से एक की मुख्य और दूसरे की गौण रूप से विवक्षा करनाः तथा धर्म धर्मी में से किसी को मुख्य और किसी को गौण समझना, नैगमनय है.। नैगमनय अनेक प्रकार से वस्तु का बोध कराता है।
_सत्व और चैतन्य आत्मा के दो धर्म हैं. किन्तु 'आत्मा में - सत्व युक्त चैतन्य है' इस प्रकार कह कर चैतन्य धर्म को मुख्य बनाया गया है और सत्व को चैतन्य का विशेषण बनाकर गौण कर दिया है।
इसी प्रकार द्रव्य और वस्तु दो धर्मी हैं, किन्तु 'पर्याय वाला द्रव्य वस्तु है' ऐसा कह कर द्रव्य को गौण और वस्तु को मुख्य रूप से विवक्षित किया गया है।
इसी प्रकार 'विषयासक्त जीव क्षण भर सुखी है' यहाँ जीव विशेष्य होने के कारण मुख्य है और सुखी विशेषण होने के कारण गौण है।
नैगमाभास का स्वरूप धर्मद्वयादीनामैकान्तिकपार्थक्याभिसन्धि गमाभासः॥११॥
अर्थ-दो धर्मों का, दो धर्मियों का और धर्म तथा धर्मी का एकान्त भेद मानना नैगमनयाभास कहलाता है।
__विवेचन-वास्तव में धर्म और धर्मी में कथंचित् भेद है, दो धर्मों में तथा दो धर्मियों में भी आपस में कथंचित् भेद है; इसके बदले उनमें सर्वथा भेद की कल्पना करना नैग़मजयाभास है।