Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 147
________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक (१३८) - ___ नैगमाभास का उदाहरण ____यथाऽऽत्मनि सत्त्वचैतन्ये परस्परमत्यन्तं पृथग्भूते इत्यादिः ॥ १२ ॥ अर्थ-जैसे आत्मा में सत्त्व और चैतन्य धर्म परस्पर में सर्वथा भिन्न हैं, इत्यादि मानना । संग्रहनय का स्वरूप सामान्यमात्रग्राही परामर्शः संग्रहः ॥ १३ ॥ अयमुभयविकल्प:-परोऽपरश्च ॥ १४ ॥ अर्थ-सिर्फ सामान्य को ग्रहण करने वाला अभिप्राय संग्रह नय है। संग्रहनय के दो भेद हैं-(१) परसंग्रह (२) अपरसंग्रह। विवेचन-विशेष की ओर उदासीनता रख कर सत्तारूप पर सामान्य को और द्रव्यत्व, जीवत्व आदि अपर सामान्य को ही ग्रहण करने वाला नय संग्रहनय कहलाता है। संग्रहनय का विषय सामान्य है और सामान्य पर-अपर के भेद से दो प्रकार का है अतएव संग्रहनय के भी दो भेद होगये हैं-परसंग्रह और अपरसंग्रह। तो . परसंग्रहनय प्रशेषनिशेश्वौदासीन्यं भजमानः शुद्धद्रव्यं सन्मात्रमभिमन्यमानः परसंग्रह

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