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[ षष्ठ परिच्छेद
के टुकड़े नहीं दिये है; जो वीतराग होता है वह दयापात्र व्यक्तियों को परम कृपा से प्रेरित होकर अपने शरीर के मांस के टुकड़े दे देता है, जैसे बुद्ध | यहाँ बुद्ध दृष्टान्त संदिग्ध-उभय व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है. क्योंकि बुद्ध में तो वीनगगता के अभाव की ( साध्य की ) व्यावृत्ति है और न दयापात्र व्यक्तियों को मांस के टुकड़े न देने रूप साधन की ही व्यावृत्ति है । अर्थात् यहाँ दृष्टान्न में साध्य और साधन की ही व्यावृत्ति है । अर्थात् यहाँ दृष्टान्त में साध्य और साधन दोनों के अभाव का निश्चय नहीं है ।
(७) अव्यतिरेक दृष्टान्ताभास
न वीतरागः कश्चित् विवक्षितः पुरुषो वक्तृत्वात् यः पुनर्वीतरागो न स वक्ता यथोपलखण्ड इत्यव्यतिरेकः ॥७७॥
अर्थ- कोइ विवक्षित पुरुष वीतराग नहीं है क्योंकि वह वक्ता है; जो होता है वह वक्ता नहीं होता, जैसे 'पत्थर का टुकड़ा' दृष्टान्त अव्यतिरेक दृष्टांन्ताभास है, क्योंकि यहाँ जो व्यतिरेक व्याप्त बताई गई है, वह ठीक नहीं है ।
(८) अप्रदर्शित व्यतिरेक दृष्टान्ताभास
अनित्यः शब्दः कृतकत्वादाकाशवदिन्यप्रदर्शितव्यतिरेकः ॥ ७८ ॥
अर्थ - शब्द अनित्य है क्योंकि कृतक है, जैसे आकाश । यहाँ आकाश दृष्टान्त अप्रदर्शितव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है, क्योंकि इस दृष्टान्त में व्यतिरेकव्याप्ति नहीं बताई गई हैं ।