Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 143
________________ सातवाँ परिच्छेद नयों का विवेचन नय का स्वरूप नीयते येन श्रुताख्यप्रमाणविषयीकृतस्यार्थस्यांशस्तदितरांशौदासीन्यतः स प्रतिपत्तुरभिप्रायविशेषो नयः ॥ १ ॥ अर्थ - श्रुतज्ञान द्वारा जाने हुए पदार्थ का एक धर्म, अन्य धर्मों को गौण करके, जिस अभिप्राय से जाना जाता है, वक्ता का यह अभिप्राय नय कहलाता है । विवेचन - श्रुतज्ञान रूप प्रमाण अनन्त धर्म वाली वस्तु को ग्रहण करता है । उन अनन्त धर्मों में से किसी एक धर्म को जानने वाला ज्ञान नय कहलाता है । नय जब वस्तु के एक धर्म को जानता है तब शेष रहे हुए धर्म भी वस्तु में विद्यमान तो रहते ही हैं किन्तु उन्हें गौण कर दिया जाता है। इस प्रकार सिर्फ एक धर्म को मुख्य करके उसे जानने वाला ज्ञान नय है । नयाभास का स्वरूप स्वाभिप्रेतादंशादितरांशापलापी पुनर्नयाभासः ॥ २ ॥ अर्थ-अपने अभीष्ट अंश के अतिरिक्त अन्य अंशों का अपलाप करने वाला नयाभास है ।

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