Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 141
________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक (१३२) । प्रागमाभास का उदाहरण यथामेकलकन्यकायाः कूले, तालहिंतालयोर्मूले सुलभाः पिएडखजूराः सन्ति, त्वरितं गच्छत गच्छत बालकाः ॥४॥ अर्थ-जैसे रेवा नदी के किनारे, ताल और हिंताल वृक्षों के नीचे पिंड खजूर पड़े हैं-लड़को ! जाओ, जल्दी जाश्रो॥ विवेचन-वास्तव में रेवा नदी के किनारे पिंडखजूर नहीं हैं, फिर भी कोई व्यक्ति बच्चों को बहकाने के लिए झूठमूठ ऐसा कहता है । इस कथन को सुनकर बच्चों को पिंडखजूर का ज्ञान होना आगमाभास है। प्रमाण संख्याभास . प्रत्यक्षमेवैकं प्रमाणमित्यादि संख्यानं तस्य संख्या ऽऽभासम् ॥ ८५॥ अर्थ-एक मात्र प्रत्यक्ष ही प्रमाण है, इत्यादि प्रमाण की मिथ्या संख्या करना संख्याभास है।। विवेचन वास्तव में प्रमाण के प्रत्यक्ष और परोक्ष दो भेद हैं, यह पहले स्पष्ट किया जा चुका है। इन भेदों से विपरीत एक, दो, तीन, चार आदि भेद मानना संख्याभाम या भेदाभास है। कौन कितने प्रमाण मानते हैं यह भी पहले ही बताया जा चुका है। विषयामास सामान्यमेव, विशेष एव, तद् द्वयंवा स्वतन्त्रमित्यादिस्तस्य विषयामासः ॥८६॥

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