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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक
(११२)
अर्थ-समान पदार्थ में 'यह वही है' ऐसा ज्ञान होना और उसी पदार्थ में 'यह उसके समान है' इत्यादि ज्ञानों को प्रत्यभिज्ञानाभास कहते हैं।
जैसे-एक साथ उत्पन्न होने वाले बालकों में विपरीत ज्ञान हो जाना।
विवेचन-देवदत्त के समान दूसरे व्यक्ति को देखकर 'यह वही देवदत्त है' ऐमा ज्ञान होना प्रत्यभिज्ञानाभास है। नात्पर्य यह है कि सहशता में एकता की प्रतीनि होना एकत्वप्रत्यभिज्ञानाभास है और एकता में सदृशता प्रतीत होना सादृश्यप्रत्यभिज्ञानाभास है।
ताभास असत्यामपि व्याप्तौ तदवभासस्ताभासः ॥ ३५ ॥
स श्यामो मैत्रतनयत्वादित्यत्र यावान्मत्रतनयः स श्याम इति ॥ ३६॥ -
अर्थ-व्याप्ति न होने पर भी व्याप्ति का आभास होना तर्काभास है।
जैसे-वह व्यक्ति काला है, क्योंकि मैत्र का पुत्र है; यहाँ पर 'जो जो मैत्र का पुत्र होता है वह काला होता है' ऐसी ब्याप्ति मालूम होना ।।
विवेचन-व्याप्ति के ज्ञान को तर्क कहते है, पर जहाँ वास्तव में व्याप्ति न हो वहाँ व्याप्ति की प्रतीति होना तर्काभास है। जैसे