Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 133
________________ प्रमाण-नय-तत्वालोक ] (६) संदिग्धउभयधर्मदृष्टान्ताभास नायं सर्वदर्शी रागादिमत्त्वान्मुनिविशेषवदित्युभयधर्मा । ६५ । अर्थ - यह पुरुष सर्वज्ञ नहीं है, क्योंकि रागादि वाला है, ' जैसे अमुक मुनिं । यह संदिग्ध - उभय दृष्टान्ताभास है । क्योंकि अमुक मुनि में सर्वज्ञता का अभाव और सगादिमत्व दोनों का ही संदेह है । दृष्टान्ताभास (७) अन अनन्वय रागादिमान् विवक्षितः पुरुषो वक्तृत्वादिष्ट पुरुषवदित्यनन्वयः ॥ ६६ ॥ (१२४) . अर्थ - विवक्षित पुरुष रागादि वाला है, क्योंकि वक्ता है, जैसे कोई इष्ट पुरुष | विवेचन -- जिस दृष्टान्त में अन्वय व्याप्ति न बन सके उसे अनन्वय दृष्टान्ताभास कहते हैं । यहाँ इष्ट पुरुष में रागादिमत्व और वक्तृत्व दोनों मौजूद रहने पर भी जो जो 'वक्ता होता है वह वह गंगादि वाला होता है' ऐसी अन्वय व्याप्ति नहीं बनती। क्योंकि ईन्त भगवान् वक्ता हैं पर रागादि वाले नहीं हैं। अत: 'इष्ट पुरुष' यह दृष्टान्त अनन्वय दृष्टान्ताभास है । (८) श्रप्रदर्शितान्वय दृष्टान्ताभास अनित्यः शब्दः कृतकत्वात्, घटवदित्य प्रदर्शितान्वयः । ६७ । अर्थ - शब्द अनित्य है, क्योंकि कृतक है, जैसे घट | यहाँ घट दृष्टान्त अप्रदर्शितान्वय दृष्टान्ताभास है ।

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