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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक ] (955)
नित्यता और सर्वथा अनित्यता से विरुद्ध कथंचित् नित्य होता है वही प्रत्यभिज्ञानवान् होता है । अतः यह विरुद्ध हेत्वाभास है ।
श्रनैकान्तिक हेत्वाभास
यस्यान्यथानुपपत्तिः सन्दिह्यते सोऽनैकान्तिकः ॥ ५४ ॥ स द्वेधा निर्णीत विपक्षवृत्तिक; सन्दिग्धविपक्षवृत्तिकश्च ॥ ५५ ॥ निर्णीतविपक्षवृत्तिको यथा - नित्यः शब्दः प्रमेयत्वात् । ५६ । संदिग्धविपक्षवृत्तिको यथा- विवादापन्नः पुरुषः सर्वज्ञो न भवति वक्तृत्वात् ॥५७॥
अर्थ - जिस हेतु की अन्यथानुपपत्ति ( व्याप्ति ) में सन्देह हो वह नैकान्तिक हेत्वाभास कहलाता है ॥
नैकान्तिकखाभास दो प्रकार का है-निर्णीतविपक्षवृत्ति और संदिग्ध विपक्षवृत्तिक ।
शब्द नित्य है क्योंकि वह प्रमेय है, यहाँ प्रमेयस्व हेतु निर्णीतविपक्षवृत्तिक है।
विवादग्रस्त पुरुष सर्वज्ञ नहीं है, क्योंकि वक्ता है; यहाँ वक्तृत्व हेतु संदिग्ध विपक्ष वृत्तिक है ।
विवेचन – जहाँ साध्य का प्रभाव हो वह विपक्ष कहलाता । और विपक्ष में जो हेतु रहता हो वह अनैकान्तिक हेत्वाभास है । जिस हेतु का विपक्ष में रहना निश्चित हो वह निर्णीतपिपृतिक है और जिस हेतु का विपक्ष में रहना संदिग्ध हो वह संदिग्ग वृत्तक अनैकान्तिक हेत्वाभास कहलाता है ।