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[षष्ठ परिच्छेद
दोनों को सिद्ध नहीं है। क्योंकि शब्द आँख से नहीं दीखता बल्कि कान से सुनाई देता है। ।
. वृक्ष अचेतन हैं, क्योंकि वे ज्ञान, इन्द्रिय और मरण से रहित हैं, यहाँ ज्ञान: इन्द्रिय और मरण से रहित हैं, यह हेतु वादी बौद्ध को मिद्ध है किन्तु प्रतिवादी जैन को सिद्ध नहीं है। क्योंकि जैन लोग वृक्षों में ज्ञान, इन्द्रिय और “मरण का होना स्वीकार करते हैं। अत: केवल प्रतिवादी को असिद्ध होने के कारण यह हेतु अन्यतरासिद्ध है।
विरुद्ध हेत्वाभास साध्यविपर्ययेणैव यस्यान्यथानुपपत्तिरध्यवसीयते स विरुद्धः ॥ ५२ ॥
यथा नित्य एव पुरुषोऽनित्य एव वा, प्रत्यभिज्ञानादिमत्त्वात् ॥ ५३ ॥
अर्थ-साध्य से विपरीत के पदार्थ साथ जिसकी व्याप्ति निश्चित हो वह विरुद्ध हेत्वाभास कहलाता है ।
जैसे-पुरुष सर्वथा नित्य या सर्वथा अनित्य ही है, क्योंकि वह प्रत्यभिज्ञान आदि वाला है।
विवेचन-यहाँ सर्वथा नित्यता अथवा सर्वथा अनित्यता साध्य है, इस साध्य से विपरीत कथंचित् अनित्यता है। और कथं. चित् निस्यता अथवा कथंचित् अनित्यता के साथ ही 'प्रत्यभिज्ञान आदि वाले' हेतु की व्याप्ति निश्चित है । अर्थात् जो सर्वथा