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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक]
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यथा-अम्बुधरेषु गन्धर्वनगरज्ञानं, दुःखे सुखज्ञानञ्च॥२८
अर्थ-जो ज्ञान वास्तव में सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष न हो किन्तु मांव्यवहारिक प्रत्यक्ष सरीखा जान पड़ता हो वह सांव्यवहारिक प्रत्यक्षाभास है। . जैसे-मेघों में गन्धर्व-नगर का ज्ञान होना और दुःख में सुख का ज्ञान होना।
विवेचन-सांव्यवहारिक प्रत्यक्षाभास का लक्षण स्पष्ट है । यहाँ 'मेघों में गन्धर्व-नगर का ज्ञान', यह उदाहरण इन्द्रिय निबंधन सांव्यवहारिक प्रत्यक्षाभास का उदाहरण है, क्योंकि यह इन्द्रियों से होता है और दुःग्व में सुख का ज्ञान' यह उदाहरण अनिन्द्रियनिबंधनसांव्यवहारिक प्रत्यक्षाभाम का उदाहरण है क्योंकि यह ज्ञान मन से उत्पन्न होता है।
पारमार्थिक प्रत्यक्षाभास पारमार्थिकप्रत्यक्षमिव यदाभासते तत्तदाभासम् ॥२६॥
यथा-शिवाख्यस्य राजर्षेरसंख्यातद्वीपसमुद्रेषु सप्तद्वीपसमुद्रज्ञानम् ॥ ३० ॥
अर्थ जो ज्ञान पारमार्थिक प्रत्यक्ष न हो किन्तु पारमाथिक प्रत्यक्ष सरीखा झलके उसे पारमार्थिक प्रत्यक्षाभास कहते हैं ।।
.. जैसे—शिव नामक राजर्षि का असंख्यात द्वीप-समुद्रों में से सिर्फ सात द्वीप समुद्रों का ज्ञान ॥ . . . विवेचन-शिव राजर्षि को विभंगावधि ज्ञान उत्पन्न हुआ