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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक]
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अत्थंगयम्मि आइच्चे पुरत्था य अणुग्गए । आहारमाइयं सव्वं मणसा वि ण पत्थए ।
अर्थात् सूर्य अस्त होजाने पर और पूर्व दिशा में उदित होने से पहले सब प्रकार के आहार आदि की मन में इच्छा भी न करे।
रात्रि-भोजन का निषेध करने वाले इस आगम से 'जैनों को रात्रि में भोजन करना चाहिए' यह प्रतिज्ञा बाधित होजाती है।
लोकनिराकृत लोकनिराकृतसाध्यधर्मविशेषणो यथा-न पारमार्थिकः प्रमाणप्रमेयव्यवहारः॥४४॥
अर्थ-.-'प्रमाण और प्रमाण से प्रतीत होने वाले घट-पट आदि पदार्थ काल्पनिक है। यह लोकनिराकृतसाध्यधर्मविशेषण पक्षाभास है।
_ विवेचन-लोक में प्रमाण द्वारा प्रतीत होने वाले सब पदार्थ सच्चे माने जाते हैं और ज्ञान भी वास्तविक माना जाता है, अतएव उनकी काल्पनिकता लोक-प्रतीति से बाधित होने के कारण यह प्रतिज्ञा लोकबाधित है।
__ स्ववचनबाधित स्ववचननिराकृतसाध्यधर्मविशेषणो यथा-नास्ति प्रमेयपरिच्छेदकं प्रमाणम् ॥ ४५ ॥
अर्थ-'प्रमाण, प्रमेय को नहीं जानता' यह स्ववचन निराकृत साध्यधमविशेषण पक्षाभास है।