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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (११६) अत्थंगयम्मि आइच्चे पुरत्था य अणुग्गए । आहारमाइयं सव्वं मणसा वि ण पत्थए । अर्थात् सूर्य अस्त होजाने पर और पूर्व दिशा में उदित होने से पहले सब प्रकार के आहार आदि की मन में इच्छा भी न करे। रात्रि-भोजन का निषेध करने वाले इस आगम से 'जैनों को रात्रि में भोजन करना चाहिए' यह प्रतिज्ञा बाधित होजाती है। लोकनिराकृत लोकनिराकृतसाध्यधर्मविशेषणो यथा-न पारमार्थिकः प्रमाणप्रमेयव्यवहारः॥४४॥ अर्थ-.-'प्रमाण और प्रमाण से प्रतीत होने वाले घट-पट आदि पदार्थ काल्पनिक है। यह लोकनिराकृतसाध्यधर्मविशेषण पक्षाभास है। _ विवेचन-लोक में प्रमाण द्वारा प्रतीत होने वाले सब पदार्थ सच्चे माने जाते हैं और ज्ञान भी वास्तविक माना जाता है, अतएव उनकी काल्पनिकता लोक-प्रतीति से बाधित होने के कारण यह प्रतिज्ञा लोकबाधित है। __ स्ववचनबाधित स्ववचननिराकृतसाध्यधर्मविशेषणो यथा-नास्ति प्रमेयपरिच्छेदकं प्रमाणम् ॥ ४५ ॥ अर्थ-'प्रमाण, प्रमेय को नहीं जानता' यह स्ववचन निराकृत साध्यधमविशेषण पक्षाभास है।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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