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[ षष्ठ परिच्छेद
'मैत्र के पुत्र' हेतु के साथ कालेपन की व्याप्ति नहीं है फिर भी व्याप्ति प्रतीति हुई अतः यह मिथ्या व्याप्ति-ज्ञान तर्काभास है।
अनुमानाभास
पक्षाभासादिसमुत्थं ज्ञानमनुमानाभासम् ॥ ३७ ॥
अर्थ-पक्षाभास आदि से उत्पन्न होने वाला ज्ञान अनुमानाभास है।
_ विवेचन-पक्ष, हेतु, दृष्टान्त, उपनय और निगमन, अनुमान के अवयव हैं। इन पाँचों अवयवों में से किसी एक के मिथ्या होने पर अनुमानाभास हो जाता है। अतएव यहाँ पाँचों अवयवों के आभास आगे बनाये जायेंगे। इन सब प्रामासों को ही अनुमानाभास समझना चाहिये।
पक्षाभास
तत्र प्रतीतनिराकृतानभीप्सितसाध्यधर्मविशेषणास्त्रयः पक्षाभासाः ॥ ३८ ॥
अर्थ-पक्षाभास तीन प्रकार का है। (१) प्रतीतसाध्यधर्मविशेषण (२) निराकृत साध्यधर्मविशेषण (३) अनभीप्सित साध्यधर्मविशेषण-पक्षाभास।
विवेचन - साध्य को अप्रतीत, अनिराकृत और अभीप्सित बताया है, उससे विरुद्ध साध्य जिस पक्ष में बताया जाय वह पक्षाभास है।