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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक]
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विवेचन-प्रत्येक पदार्थ में अनन्त धर्म पाये जाते हैं, अथवा यों कहें कि अनन्त धर्मों का पिंड ही पदार्थ कहलाता है। इन अनन्न धर्मों में से किसी एक धर्म को लेकर कोई पूछे कि, अमुक धर्म सत् है ? या अमत् है ? या सत् और अमत उभय रूप है ? इत्यादि । तो इन प्रश्नों के अनुसार उस एक धर्म के विषय में सात प्रकार के उत्तर देने पड़ेंगे। प्रत्येक उत्तर के साथ 'स्यात्' ( कथंचित् ) शब्द जुड़ा होगा। कोई उत्तर विधि रूप होगा-अर्थात कोई उत्तर हाँ में होगा कोई नहीं में होगा। किन्तु विधि और निषेध में विरोध नहीं होना चाहिये । इस प्रकार सात प्रकार के उत्तर को-अर्थात् वचन-प्रयोग को सप्तभंगी कहते हैं।
सप्तभंगी से हमें यह ज्ञात होजाता है कि पदार्थ में धर्म किस प्रकार से रहते हैं।
सात भंग तद्यथा-स्यादस्त्येव सर्वमिति विधिकल्पनया प्रथमो भङ्गः॥ १५ ॥ ' स्यानास्त्येव सर्वमिति निषेधकल्पनया द्वितीयो भङ्गः ॥१६॥ ___ स्यादस्त्येव स्यानास्त्येव क्रमतो विधिनिषेधकल्पनया तृतीयः ॥ १७ ॥
स्यादवक्तव्यमेवेतियुगपद्विधिनिषेधकल्पनया चतुर्थः।१८।
स्यादस्त्येव स्यादवक्तमेवेति - विधि कल्पनया युगपद् विधिनिषेधकल्पनया च पश्चमः ॥ १६ ॥
स्यानास्त्येव स्यादवक्तमेवेति निषेधकल्पनया युगपद् विधिनिषेधकल्पनया च षष्ठः ॥ २० ॥