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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] . (६२)
स्मक वस्तु का प्रतिपादन करने वाला वाक्य सकलादेश कहलाता है।
विकलादेश का स्वरूप तद्विपरीतस्तु विकलादेशः ॥ ४५ ॥
अर्थ-सकलादेश से विपरीत वाक्य विकलादेश कहलाता है।
विवेचन-नय के विषयभूत वस्तु-धर्म का काल आदि द्वारा भेद की प्रधानता अथवा भेद के उपचार से, क्रम से प्रतिपादन करने वाला वाक्य विकलादेश कहलाता है । सकलादेश में द्रव्यार्थिक नय की प्रधानता के कारण वस्तु के अनन्त धर्मों का अभेद किया जाता है, विकलादेश में पर्यायार्थिक नय को प्रधानता के कारण उन धर्मों का भेद किया जाता है । यहाँ भी कालादि आठ के आधार पर ही भेद किया जाता है । पर्यायार्थिक नय कहता है-एक ही काल में, एक ही वस्तु में, नाना धर्मों की सत्ता स्वीकार की जायगी तो वस्तु भी नाना रूप ही होगी-एक ही नहीं । इसी प्रकार नाना गुणों सम्बन्धी आत्मरूप भिन्न-भिन्न ही हो सकता है-एक नहीं । इत्यादि ।
प्रमाण का प्रतिनियत विषय तद् द्विभेदमपि प्रमाणमात्मीयप्रतिबन्धकापगमविशेषस्वरूपसामर्थ्यतः प्रतिनियतमर्थमवद्योतयति ॥ ४६॥
अर्थ-वह प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों प्रकार का प्रमाणा, अपना अपना आवरण करने वाले कर्मों के क्षमोपशम रूप शक्ति मे नियतनियत पदार्थ को प्रकाशित करना है।