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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक ] (१००)
केवलज्ञान का परम्परा फल उदासीनता है |
शेष प्रमाणों का परम्पराफल ग्रहण करने की बुद्धि, त्यागबुद्धि और उपेक्षा बुद्धि होना है ॥
विवेचन - प्रमाण के द्वारा। किसी पदार्थ को जानने के बाद ही ज्ञान की निवृत्ति हो जाती है वह अनन्तर फल या साक्षात् फल है । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, प्रत्यक्ष, परोक्ष आदि सभी ज्ञानों का साक्षात फल अज्ञान का हट जाना ही है ।
ज्ञान-निवृत्ति रूप साक्षात् फल के फल को परम्परा फल कहते हैं क्योंकि यह अज्ञाननिवृत्ति से उत्पन्न होता है । परम्परा फल सब ज्ञानों का समान नहीं है । केवली भगवान् केवल ज्ञान से सब पदार्थों को जानते हैं, पर न तो उन्हें किसी पदार्थ को ग्रहण करने की बुद्धि होती है, न किसी पदार्थ को त्यागने की ही । वीतराग होने के कारण सभी पदार्थों पर उनका उदासीनता का भाव रहता है । अतएव केवलज्ञान का परम्परा फल उदासीनता ही है ।
केवलज्ञान के अतिरिक्त शेष सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष, विकलपारमार्थिक प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाणों का परम्परा फल समान है । ग्राह्य पदार्थों को ग्रहण करने का भाव, त्याज्य पदार्थों को त्यागने का भाव और उपेक्षणीय पदार्थों पर उपेक्षा करने का भाव होना इन प्रमाणों का परम्परा फल है ।
प्रमाण और फल का भेदाभेद
तत्प्रमाणतः स्याद्भिन्नमभिन्नं च, प्रमाणफलत्वान्यथानुपपत्तेः ॥ ६ ॥