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[ षष्ठ परिच्छेद
क्रियावान की है' ऐसा सम्बन्ध सिद्ध नहीं हो सकता । एकान्त अभेद मानने पर या तो क्रिया की ही प्रतीति होगी या कर्ता की ही प्रतीति होगी-दोनों अलग-अलग प्रतीत नहीं होंगे । एक ही पदार्थ क्रिया और कर्ता दोनों नहीं हो सकता अतएव क्रिया और क्रियावान में कथंचित् भेद भी मानना चाहिए।
शून्यवादी का खण्डन संवृत्या प्रमाणफलव्यवहार इत्यप्रामाणिकप्रलापः, परमार्थतः स्वाभिमतसिद्धिविरोधात् ॥ २१ ॥
अर्थ--प्रमाण और फल का व्यवहार काल्पनिक है, ऐसा कहना अप्रामाणिक लोगों का प्रलाप है; क्योंकि ऐसा मानने से उसका मत वास्तविक सिद्ध नहीं हो सकता।
विवेचन-प्रमाण मिथ्या-काल्पनिक है,और प्रमाण का फल भी मिथ्या है, ऐसा शून्यवादी माध्यमिक का मत है । इस प्रकार प्रमाण को मिथ्या मानने वाला शन्यवादी अपना मत प्रमाण से सिद्ध करेगा या बिना प्रमाण के ही ? अगर प्रमाण से सिद्ध करना चाहे नो मिथ्या प्रमाण से वास्तविक मत कैसे सिद्ध होगा? अगर बिना प्रमाण केही सिद्ध करना चाहे तो अप्रामाणिक बात कौन स्वीकार करेगा ? इस प्रकार शून्यवादी अपने मत को वास्तविक रूप ते सिद्ध नहीं कर सकता।
निष्कर्ष ततः पारमार्थिक एव प्रमाणफलव्यवहारः सकलपुरपार्थसिद्धिहेतुः स्वीकर्तव्यः ॥ २२॥