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[ चतुर्थ परिच्छेद
विवेचन-परोक्ष ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से परोक्ष प्रमाण उत्पन्न होता है और प्रत्यक्ष ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से प्रत्यक्ष प्रमाण उत्पन्न होता है। इसी प्रकार घट-ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होने पर घट का ज्ञान होता है और पट-ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होने पर पट का ज्ञान होता है। यही कारण है कि किसी ज्ञान में कवल घट ही प्रतीत होता है और किसी में सिर्फ पट ही प्रतीत होता है । सारांश यह है कि जिस पदार्थ को जानने वाले ज्ञान के
आवरण का क्षयोपशम होगा वही पदार्थ उस ज्ञान में प्रकाशित होगा । इस प्रकार क्षयोपशम रूप शक्ति ही नियत-नियत पदार्थों को प्रकाशित करने में कारण है।
मतान्तर का खण्डन
- न तदुत्पत्तितदाकारताभ्यां तयोः पार्थक्येन सामस्त्येन च व्यभिचारोपलम्भात् ॥ ४७ ॥
___ अर्थ-तदुत्पत्ति और तदाकारना से प्रतिनियत पदार्थ को जानने की व्यवस्था नहीं हो सकती; क्योंकि अकेली तदुत्पत्ति में, अकेली तदाकारता में और तदुत्पत्ति-तदाकारता दोनों में व्यभिचार पाया जाता है।
विवेचन-ज्ञान का पदार्थ से उत्पन्न होना तदुत्पत्ति है और ज्ञान का पदार्थ के आकार का होना तदाकारता है। बौद्ध इन दोनों से प्रतिनियत पदार्थ का ज्ञान होना मानते हैं। उनका कथन है कि जो ज्ञान जिस पदार्थ से उत्पन्न होता है और जिस पदार्थ के आकार का होता है, वह ज्ञान उमी पदार्थ को जानता है । इस प्रकार तदुत्पत्ति और तदाकारता से ही ज्ञान नियत वट आदि को जानता है, क्षयोप