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[पंचम परिच्छेद
प्रतिव्यक्ति तुल्या परिणतिस्तिर्यक्सामान्यं, शबलशाबलेयादिपिएडेषु गोत्वं यथा ॥ ४॥ ___पूर्वापरपरिणामसाधारणं द्रव्यमूर्खतासामान्यं, कटककंकणाद्यनुगामिकाञ्चनवत् ॥ ५॥
अर्थ-सामान्य दो प्रकार का है-तिर्यक् सामान्य और ऊर्ध्वता सामान्य ॥
प्रत्येक व्यक्ति में समान परिणाम को तिर्यक सामान्य कहते हैं, जैसे-चितकबरी, श्याम, लाल आदि गायों में 'गोत्व' तिर्यक् सामान्य है।
पूर्व पर्याय और उत्तर पर्याय में समान रूप से रहने वाला द्रव्य ऊर्ध्वतासामान्य कहलाता है। जैसे-कड़े, कंकण आदि पर्यायों में समान रहने वाला सुवर्ण द्रव्य ऊर्ध्वता सामान्य है ।।।
विवेचन-तिर्यक् सामान्य और ऊर्ध्वता सामान्य के उदाहरणों को देखने से विदित होगा कि ध्यान-पूर्वक एक काल में अनेक व्यक्तियों में पाई जाने वाली समानता तिर्यक् सामान्य है और अनेक कालों में एक ही व्यक्ति में पाई जाने वाली समानता ऊर्ध्वतासामान्य है। दोनों सामान्यों के स्वरूप में यही भेद है।
विशेष का निरूपण विशेषोऽपि द्विरूपो-गुणः पर्यायश्च ॥ ६ ॥
गुणः सहभावी धर्मो, यथा-आत्मनि विज्ञानव्यक्तिशक्त्यादयः ॥७॥