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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक
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शम रूप शक्ति से नहीं । बौद्धों के इस मत का यहाँ खण्डन किया गया है।
बौद्धों की मान्यता के अनुमार पूर्व क्षण, उत्तर क्षण को उत्पन्न करता है और उत्तर क्षण, पूर्व क्षण के आकार का ही होता है। इस मान्यता के अनुसार घट के प्रथम क्षण से अन्तिम क्षण उत्पन्न होता है अतएव वहाँ तदुत्पत्ति होने पर भी अन्तिम क्षण,प्रथम क्षण को नहीं जानता यह तदुत्पत्ति में व्यभिचार है। इमी प्रकार एक स्तम्भ समान आकार वाले दूसरे स्तम्भ को नहीं जानता यह तदाकारता में व्यभिचार है । जल में प्रतिबिम्बित होने वाला चन्द्रमा, आकश के चन्द्रमा से उत्पन्न हुआ और उसी आकार का भी है, अतः वहाँ तदुत्पत्ति और तदाकारता दोनों हैं फिर भी जल-चन्द्र, आकाश-चन्द्र को नहीं जानता । यह तदुत्पत्ति और तदाकारता दोनों में व्यभिचार है।
यदि यह कहो कि यह सत्र जड़ पदार्थ हैं, इसलिए नहीं जानते तो पूर्वकालीन घट-ज्ञान से उत्तरकालीन घट ज्ञान उत्पन्न होता है और वह तदाकार भी है और ज्ञान-रूप भी है, फिर भी वह उत्तरकालीन घट ज्ञान पूर्वकालीन घट ज्ञान को नहीं जानता (घट को ही जानता है ), अतएव ज्ञानरूपता होने पर भी तदुत्पत्ति और तदाकारता में व्यभिचार आता है। . इससे यह सिद्ध हुआ कि तदुत्पत्ति और तदाकारता अलगअलग या मिलकर भी प्रतिनियत पदार्थ के ज्ञान में कारण नहीं हैं, किंतु ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से ही यह व्यवस्था होती है। ........