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प्रमाण -नय-तन्त्रालोक ]
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ही प्रश्न इसलिए हो सकते हैं कि उसे जिज्ञासाएँ सात ही हो सकती हैं। जिज्ञासाएँ सात इसलिए होती हैं कि उसे सन्देह सात ही होते हैं। सन्देह सात इसलिए होते हैं कि सन्देह के विषयभूत अस्तित्व आदि प्रत्येक धर्म सात प्रकार के ही हो सकते हैं।
सप्तभङ्गी के दो भेद
इयं सप्तभंगी प्रतिभंगं सकलादेशस्वभावा विकलादेशस्वभावा च ॥ ४३ ॥
अर्थ - यह सप्तभंगी प्रत्येक भंग में दो प्रकार की है— सकला - देश स्वभाव वाली और विकलादेश स्वभाव वाली ।
विवेचन - जो सप्तभंगी प्रमाण के अधीन होती है वह सकलादेश स्वभाव वाली कहलाती है और जो नय के अधीन होती है वह विकलादेश स्वभाव वाली होती है ।
सकलादेश का स्वरूप
प्रमाणप्रतिपन्नानन्तधर्मात्मकवस्तुनः कालादिभिरभेदवृत्तिप्राधान्यात् अभेदोपचारात् वा यौगपद्येन प्रतिपादकं वचः सकलादेशः ।
अर्थ - प्रमाण से जानी हुई अनन्त धर्मों वाली वस्तु को, काल आदि के द्वारा, अभेद की प्रधानता से अथवा अभेद का उपचार करके, एक साथ प्रतिपादन करने वाला वचन सकलादेश कहलाता है ।