________________
(-8 )
.. [ चतुर्थ परिच्छेद
हैं और एक-एक धर्म को लेकर एक-एक सप्तभंगी ही बनती है इसलिए अनन्त धर्मों की अनन्त सप्तभंगियाँ होंगी। और अनन्त सप्तभंगियाँ जैनों ने स्वीकार की हैं।
___ भंग सम्बन्धी अन्यान्य शंका-समाधान
प्रतिपर्यायं प्रतिपाद्यपर्यनुयोगानां सप्तानामेव संभवात् ॥३६॥ तेषामपि सप्तत्वं सप्तविधतजिज्ञासानियमात् ॥४०॥ तस्या अपि सप्तविधत्वं सप्तधैव तत्सन्देहसमुत्पादात् ।।४१॥
तस्यापि सप्तप्रकारत्वनियमः स्वगोचरवस्तुधर्माणां सप्तविधत्वस्यैवोपपत्तेः॥ ४२ ॥
अर्थ-भंग सात इस कारण होते हैं कि शिष्य के प्रश्न सात ही हो सकते हैं।
सात प्रकार की जिज्ञासा ( जानने की इच्छा ) होती है अत: प्रश्न सान ही होते हैं।
मान ही सन्देह होते हैं इसलिए जिज्ञासाएँ सात होती हैं ।।
सन्देह के विषयभून अम्निन्व आदि वस्तु के धर्म सात प्रकार के होते हैं अतएव सन्देह भी मान ही होते हैं।
विवेचन-वस्तु के एक धर्म की अपेक्षा सात ही भंग क्यों होते हैं ? न्यून या अधिक कों नहीं होते ? इस शंका का समाधान करने के लिए यहाँ कारण-परम्पग बताई है । सात भंग इसलिए होते हैं कि एक धर्म के विषय में शिष्य के प्रश्न सात ही हो सकते हैं। सात