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[चतुर्थ परिच्छेद
- विवेचन-शब्द केवल पंचम भंग का ही वाचक है, ऐसा मानना मिथ्या है क्योंकि वह 'स्यात नास्ति वक्तव्य' रूप छठे भक्त का वाजक भी प्रतीत होता है।
षष्ठ भङ्ग के एकांत का निराकरण निषेधात्मनोऽर्थस्यैव वाचकः सन्नुभयात्मनो युगपदवाचक एवायमित्यवधारणं न रमणीयम् ॥ ३३॥
इतरथाऽपि संवेदनात् ॥ ३४ ॥
अर्थ-शब्द निषेध रूप पदार्थ का वाचक होता हुआ विधिनिषेध रूप पदार्थ का युगपत् अवाचक ही है, ऐसा एकान्त निश्चय करना ठोक नहीं है ।।
___क्योंकि अन्य प्रकार से भी शब्द पदार्थ का वाचक मालूम होता है।
विवेचन-शब्द सिर्फ नास्ति वक्तव्यता रूप छठे भङ्ग का ही वाचक है ऐसा एकान्त भी मिथ्या है क्योंकि शब्द प्रथम, द्वितीय आदि भङ्गों का भी वाचक प्रतीत होता है ।
सातवें भङ्ग के एकांत का निराकरण क्रमाक्रमाभ्यामुभयस्वभावस्य भावस्य वाचकश्चावाचकश्च ध्वनि न्यथेत्यपि मिथ्या ॥ ३५ ॥ विधिमात्रादिप्रधानतयाऽपि तस्य प्रसिद्धःप्रतीतिः॥३६॥ अर्थ-शब्द क्रम से उभयरूप और युगपत् उभयरूप पदार्थ