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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] . (८६)
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तस्यावक्तव्यशब्देनाप्यवाच्यत्वप्रसङ्गात् ॥ ३० ॥
अर्थ---शब्द एक साथ विधि-निषेध रूप पदार्थ का अवाचक ही है, ऐसा कहना उचित नहीं है ।।
क्योंकि ऐसा मानने से पदार्थ अवक्तव्य शब्द से भी वक्तव्य नहीं होगा।
विवेचन-शब्द चतुर्थ अंग अर्थात् अवनता को ही प्रति. पादन करता है, ऐसा मान लेने पर पदार्थ मर्वथा अवक्तव्य हो जायगा: फिर वह प्रवक्तव्य शब्द से भी नहीं कहा जा सकेगा। अतः केवल चतुर्थ भंग का वाचक शब्द नहीं माना जा सकता।
पंचम भङ्ग के एकांत का निराकरण विध्यात्मनोऽर्थस्य वाचकःसन्नुभयात्मनो युगपदवाचक एव स इत्येकान्तोपि न कान्तः ॥ ३१ ॥ . निषेधात्मनः सह द्वयात्मनश्वार्थस्य वाचकत्वावाचकाभ्यामपि शब्दस्य प्रतीयमानत्वात् ॥ ३२ ॥
अर्थस्य-शब्द विधि रूप पदार्थ का वाचक होता हा उभयात्मक-विधि निषेध रूप पदार्थ का युगपत् अवाचक ही है, अर्थात् पंचम भंग का ही वाचक है; ऐसा एकान्त मानना ठीक नहीं है।
. क्योंकि शब्द निषेध रूप पदार्थ का वाचक और युगपत् द्वयात्मक (विधि-निषेध रूप) पदार्थ का अवाचक है, ऐसी भी प्रतीति होती है।