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प्रमाण -नय-तत्त्व लोक
क्योंकि जो वस्तु कहीं, कभी, किसी प्रकार प्रधान रूप से नहीं जानी गई है वह अप्रधान रूप से नहीं जानी जा सकती ||
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विवेचन – सप्तभंगी का स्वरूप बताते हुए शब्द को विधिनिषेध आदि का वाचक कहा गया है। यहाँ 'शब्द विधि का ही वाचक है' इस एकान्त का खण्डन किया गया हैं।' इस खण्डन को प्रश्नोत्तर रूप से समझना सुगम होगा:
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एकान्तवादी - शब्द विधि का ही वाचक है, निषेध का वाचक नहीं है ।
अनेकान्तवादी — आपका कथन ठीक नहीं है । ऐसा मानने से तो निषेध का ज्ञान शब्द से होगा ही नहीं ।
एकान्तवादी - शब्द से निषेध का ज्ञान प्रधान रूप से होता है, प्रधान रूप से नहीं |
अनेकान्तवादी - जिस वस्तु को कभी कहीं प्रधानरूप मेंअसली तौर पर नहीं जाना उसे अप्रधान रूप में जाना नहीं जा सकता । अतः निषेध यदि कभी कहीं प्रधान रूप से नहीं जाना गया. तो प्रधान रूप से भी वह नहीं जाना जा सकता । जो असली केसरी को नहीं जानता वह पंचाब केसरी को कैसे जानेगा ? अतएव शब्द को विधि का ही वाचक नहीं मानना चाहिए ।
द्वितीय भंग के एकान्त का निराकरण
निषेधप्रधान एव शब्द इत्यपि प्रागुक्तन्यायादपास्तम् ।। २६ ।।