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[चतुर्थ परिच्छेद
एक साथ बताने वाला कोई शब्द न होने से घट को अवक्तव्य कहना पड़ा है।
(५) केवल विधि और एक साथ विधि-निषेध की विवक्षा करने से 'घट है और प्रवक्तव्य है' यह पाँचवाँ भंग बनता है।
____(६) केवल निषेध और एक माथ विधि-निषेध-दोनों की विवक्षा से 'घट नहीं है और अवक्तव्य है' यह छठा भंग बनता है। . (७) क्रम से विधि-निषेध-दोनों की और एक साथ विधिनिषेध-दोनों की विवहा से घट है, नहीं है, और प्रवक्तव्य है' यह सातवाँ भंग बनता है।
प्रथम भंग के एकान्त का निराकरण विधिप्रधान एव ध्वनिरिति न साधु ॥ २२ ॥ निषेधस्य तस्मादप्रतिपत्तिप्रसक्तेः॥ २३ ॥ अप्राधान्येनैव ध्वनिस्तमभिधत्ते इत्यप्यसारं ॥ २४ ।।
क्वचित् कदाचित् कथश्चित्प्राधान्येनाप्रतिपन्नस्य तस्याप्राधान्यानुपपत्तेः ॥ २५ ॥
अर्थ-शब्द प्रधानरूप से विधि को ही प्रतिपादन करता है. यह कथन ठीक नहीं।
क्योंकि शब्द से निवेध का ज्ञान नहीं हो सकेगा।
शब्द निषेध को अप्रधान रूप से ही प्रतिपादन करता है, यह कथन भी निस्सार है।