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[चतुर्थ परिच्छेद
विवेचन-दीपक के समीप अच्छा या बुग जो भी पदार्थ होगा उसीको दीपक प्रकाशित करेगा उसी प्रकार शब्द वक्ता द्वारा प्रयोग किये जाने पर पदार्थ का बोध करा देगा, चाहे वह पदार्थ वास्तविक हो या अवास्तविक हो, काल्पनिक हो या सत्य हो। तात्पर्य यह है कि शब्द का कार्य पदार्थ का बोध कराना है, उसमें सच्चाई और झुठाई के वक्ता गुणों और दोषों पर निर्भर है। वक्ता यदि गुणवान् होगा तो शाब्दिक ज्ञान सत्य होगा, वक्ता यदि दोषी होगा तो शाब्दिक ज्ञान मिथ्या होगा।
- शब्द की प्रवृत्ति - सर्वत्रायं ध्वनिर्विधिप्रतिषेधाभ्यां स्वार्थमभिदधानः सप्तभंगीमनुगच्छति ॥ १३ ॥
अर्थ-शब्द, सर्वत्र विधि और निषेध के द्वारा अपने वाच्यअर्थ का प्रतिपादन करता हुआ सप्तभंगी के रूप में प्रवृत्त होता है।
सप्तभंगी का स्वरूप 'एकत्र वस्तुन्येकैकधर्मपर्यनुयोगवशादविरोधेन व्यस्तयोः समस्तयोश्च विधिनिषेधयोः कल्पनया स्यात्काराङ्कितः सप्तधावाक्प्रयोगः सप्तभङ्गी ॥ १४ ॥
अर्थ-एक ही वस्तु में, किसी एक धर्म (गुण) सम्बन्धी प्रश्न के अनुरोध से सांत प्रकार के वचन-प्रयोग को सप्तभंगी कहते हैं। वह वचन 'स्यात्' पद से युक्त होता है और उसमें कहीं विधि की विवक्षा होती है, कहीं निषेध की विवक्षा होती है और कहीं दोनों की विवक्षा होती है।