________________
(७१)
[तृतीय परिच्छेद .
(३) विरुद्धम्वभावानुपलब्धि (४) विरुद्ध व्यापकानुपलब्धि (५) विरुद्ध सहचरानुपलब्धि ।।
विरुद्ध कार्यानुपलब्धि विरुद्ध कार्यानुपलब्धिर्यथा-पत्र प्राणिनि रांगातिशयः समस्ति, नीरोगव्यापारानुपलब्धेः ॥ १०५ ॥ .. अर्थ-इस प्राणी में रोग का अतिशय है, क्योंकि नीरोग चेष्टा नहीं देखी जाती।
विवेचन–यहाँ रोग का अतिशय साध्य है, उससे विरुद्ध नीरोगता है और नीरोगता के कार्य को-चेष्टा की-यहाँ अनुपलब्धि है। अतः यह विरुद्ध कार्यानुपलब्धि है।
विरुद्ध कारणानुपलब्धि विरुद्ध कारणानुपलब्धिर्यथा, विद्यतेऽत्र प्राणिनि कष्टमिष्टसंयोगाभावात् ॥ १०६ ॥
अर्थ-इस प्राणी को कष्ट है, क्योंकि इष्ट-संयोग का प्रभाव है।
विवेचन--यहाँ साध्य कष्ट है। इससे विरुद्ध सुख है। उसका कारण इष्टमित्रों का संयोग है और उसका अभाव है । अतः यह विरुद्ध कारणोपलब्धि है।
विरुद्ध स्वभावानुपलब्धि विरुद्ध स्वभावानुपलब्धिर्यथा वस्तुजातमनेकान्तात्मकं, एकान्तस्वभावानुपलम्भात् ।। १०७ ॥