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द्वितीय परिच्छेद
प्रत्यक्ष प्रमाण का विवेचन
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प्रमाण के भेद
तद् द्विभेदं प्रत्यक्षं च परोक्षं च ॥ १ ॥
अर्थ - प्रमाण दो प्रकार का है - (१) प्रत्यक्ष और (२) परोक्ष
विवेचन - प्रमाण के भेदों के सम्बन्ध में अनेक मत हैं 1 अलग-अलग दर्शनकार प्रमाणों की संख्या अलग-अलग मानते हैं । जैसे - चार्वाक - (१) प्रत्यक्ष
(२) अनुमान
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बौद्ध - (१) प्रत्यक्ष वैशेषिक – (१) प्रत्यक्ष (२) अनुमान (३) आगम नैयायिक - ( १ ) प्रत्यक्ष (२) अनुमान (३) आगम (४) उपमान प्रभाकर - (१) प्रत्यक्ष (२) अनुमान (३) आगम (५) अर्थापत्ति
उपमान
भाट्ट - ( १ ) प्रत्यक्ष (२) अनुमान (३) आगम (४) उपमान (५) अर्थापत्ति (६) अभाव
चार्वाक प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मान कर प्रत्यक्ष की प्रमाणता और अनुमान की प्रमाणता सिद्ध नहीं कर सकता । इसके अतिरिक्त वह परलोक आदि का निषेध भी नहीं कर सकता है। अतएव अनुमान प्रमाण को स्वीकार करना आवश्यक है । शेष समस्त वादियों के माने हुये प्रमाण जैनदर्शन सम्मत दो भेदों में ही अन्तर्गत हो जाते.