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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक]
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होता है, बस वही ज्ञान की स्पष्टता है । ऐसी स्पष्टता जिस ज्ञान में पाई जाती है वह ज्ञान प्रत्यक्ष कहलाता है ।
प्रत्यक्ष के भेद तद् द्विप्रकारं, सांव्यवहारिकं पारमार्थिकं च ॥ ४ ॥
अर्थ-प्रत्यक्ष प्रमाण दो प्रकार का है- (१) सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष और (२) पारमार्थिक प्रत्यक्ष । • विवेचन-इन्द्रिय और मन की सहायता से होने वाला, एक देश निर्मल ज्ञान सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहलाता है और बिना इंद्रियों एवं मन की सहायता के, आत्म-स्वरूप से उत्पन्न होने वाला स्पष्ट ज्ञान पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहलाता है।
सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के भेद तत्राद्यं द्विविधमिन्द्रियनिबन्धनमनिन्द्रियनिबन्धनं च॥शा
अर्थ सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष दो प्रकार का है- (१) इन्द्रियनिबन्धन और (२) अनिन्द्रियनिबन्धन ।
विवेचन-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चतु और कर्ण-इन पांच इन्द्रियों की सहायता से उत्पन्न होने वाला ज्ञान इन्द्रियनिबन्धन कहलाता है और मन की सहायता से उत्पन्न होने वाला ज्ञान अनिन्द्रियनिबन्धन कहलाता है।
इन्द्रिय जन्य ज्ञान में भी मन की सहायता की अपेक्षा रहती