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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक]
(३८)
धर्मी की सिद्धि धर्मिणः प्रसिद्धिः क्वचिद्विकल्पतः, कुत्रचित्प्रमाणतः क्वापि विकल्पप्रमाणाभ्याम् ॥२१॥
__ यथा समस्ति समस्तवस्तुवेदी, क्षितिधरकन्धरेयं धूमध्वजवती, ध्वनिः परिणतिमान् ॥२२॥
अर्थ-धर्मी की प्रसिद्धि कहीं विकल्प से होती है, कहीं प्रमाण से होती है और कहीं विकल्प तथा प्रमाण दोनों से होती है।
जैसे-सर्वज्ञ है, पर्वत की यह गुफा अग्निवाली है, शब्द अनित्य है।
विवेचन-प्रमाण से जिस पक्ष का न अस्तित्व सिद्ध हो और न नास्तित्व सिद्ध हो-किन्तु अस्तित्व या नास्तित्व सिद्ध करने के लिए जो शाब्दिक रूप में मान लिया गया हो वह विकल्पसिद्ध धर्मी कहलाता है । जैसे-सर्वज्ञ । सर्वज्ञ का अब तक न अस्तित्व सिद्ध है और न नास्तित्व ही । अतः वह विकल्पसिद्ध धर्मी है। प्रत्यक्ष या अन्य किसी प्रमाण से जिसका अस्तित्व निश्चित हो वह प्रमाणसिद्ध धर्मी कहलाता है। जैसे पर्वत की गुफा। पर्वत की गुफा प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध है । 'शब्द अनित्य है' यहाँ 'शब्द' पक्ष उभयसिद्ध है -वर्तमानकालीन शब्द प्रत्यक्ष से और भूत-भविष्यत् कालीन विकल्प से सिद्ध है।
परार्थानुमान का स्वरूप पक्षहेतुवचनात्मकं परार्थमनुमानमुपचारात् ॥२३।।