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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक]
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अनध्यवसाय हो वही साध्य हो सकता है, यह बताने के लिए साध्य को 'अप्रतीत' कहा है।
. जो प्रत्यक्ष आदि किसी प्रमाण से बाधित हो, वह साध्य न हो जाय, यह सूचित करने के लिए साध्य को 'अनिराकृत' कहा है।
जो वादी को सिद्ध नहीं है वह साध्य नहीं हो सकता, यह बताने के लिए साध्य को 'अभीप्सित' कहा है।
विवेचन-जिसे सिद्ध करना हो वह साध्य कहलाता है। निर्दोष साध्य में तीन बातें होनी आवश्यक हैं-(१) प्रथम यह कि प्रतिवादी को वह पहले से ही सिद्ध न हो; क्योंकि सिद्ध बात को सिद्ध करना वृथा है । (२) दूसरी यह कि साध्य में किसी प्रमाण से बाधा न हो; 'अग्नि ठण्डी है' यहाँ अग्नि का ठण्डापन प्रत्यक्ष से बाधित है अतः यह साध्य नहीं हो सकता । (३) तीसरी यह कि जिस बात को वादी सिद्ध करना चाहे वह उसे स्वयं मान्य हो; 'आत्मा नहीं है' यहाँ आत्मा का अभाव जिसे मान्य नहीं है वह आत्मा का अभाव सिद्ध करेगा तो साध्य दूषित कहलायेगा।
साध्य सम्बन्धी नियम व्याप्तिग्रहणसमयापेक्षया साध्यं धर्म एव, अन्यथा तदनुपपत्तेः॥१८॥ न हि यत्र यत्र धूमस्तत्र तत्र चित्रभानोरिव धरित्रीधरस्याप्यनुवृत्तिरस्ति ॥१६॥ आनुमानिकप्रतिपत्त्यवसरापेक्षया तु पक्षापरपर्यायस्तद्विशिष्टः प्रसिद्धो धर्मी ॥२०॥