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[प्रथम परिच्छेद
अर्थ-पक्ष और हेतु का वचन परार्थानुमान है। उसे उपचार से अनुमान कहते हैं।
विवेचन-स्वार्थानुमान को शब्दों द्वारा कहना परार्थानुमान है । मान लीजिये देवदत्त को धूम देखने से अग्नि का अनुमान हुआ । वह अपने साथी जिनदत्त से कहता है-'देखो, पर्वत में अग्नि है, क्योंकि धूम है।' तो देवदत्त का यह शब्द प्रयोग परार्थानुमान है, क्योंकि वह परार्थ है अर्थात् दूसरे को ज्ञान कराने के लिए बोला गया है।
प्रत्येक प्रमाण ज्ञान-स्वरूप होता है पर परार्थानुमान शब्दस्वरूप है। शब्द जड़ हैं अतः परार्थानुमान भी जड़रूप होने से प्रमाण नहीं हो सकता। किन्तु इन शब्दों को सुनकर जिनदत्त को स्वार्थानुमान उत्पन्न होता है । अतएव परार्थानुमान स्वार्थानुमान का कारण है । कारण को उपचार से कार्य मान कर परार्थानुमान को भी अनुमान मान लिया है।
पक्ष-प्रयोग की अावश्यकता साध्यस्य प्रतिनियतधर्मिसम्बन्धिताप्रसिद्धये हेतोरुपसंहारवचनवत् पक्षप्रयोगोऽप्यवश्यमाश्रयितव्यः ॥२४॥
त्रिविधं साधनमभिधायैव तत्समर्थनं विदधानः कः खलु न पक्षप्रयोगमङ्गीकुरुते ? ॥२॥
अर्थ-साध्य का नियत पक्ष के साथ सम्बन्ध सिद्ध करने के लिए, उपनय की भाँति पक्ष का प्रयोग भी अवश्य करना चाहिए।