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[ प्रथम परिच्छेद
श्रर्थ—व्याप्ति ग्रहण करते समय धर्म ही साध्य होता हैधर्मी नहीं; धर्मी को साध्य बनाया जाय तो व्याप्ति नहीं बन सकती ।
जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ अग्नि की भांति पर्वत (धर्मी) की व्याप्ति नहीं है ।
अनुमान प्रयोग करते समय धर्म (अग्नि) से युक्त धर्मी (पर्वत) साध्य होता है। धर्मी का दूसरा नाम पक्ष है और वह प्रसिद्ध होता है ।
विवेचन—यहाँ कब क्या साध्य होना चाहिए, यह बताया गया है । जब व्याप्ति का प्रयोग करना हो तो 'जहां जहां धूम होता है वहां-वहां अग्नि होती है' इस प्रकार अनि धर्म को ही साध्य बनाना चाहिए । यदि धर्म को ही साध्य न बनाकर धर्मी को साध्य बनाया जाय तो व्याप्ति यों बनेगी - जहां-जहां धूम है वहां-वहां पर्वत में ि है । पर ऐसी व्याप्ति ठीक नहीं है । अतएव व्याप्ति के समय धर्मी ( पक्ष ) को छोड़ कर धर्म को ही साध्य बनाना चाहिए ।
इससे विपरीत, अनुमान का प्रयोग करते समय अग्नि धर्म से युक्त धर्मी (पर्वत) को ही साध्य बनाना चाहिए । उस समय 'अग्नि है, क्योंकि धूम है' इतना कहना पर्याप्त नहीं है । क्योंकि अन का अस्तित्व सिद्ध करना इस अनुमान का प्रयोजन नहीं है किन्तु पर्वत में अग्नि सिद्ध करना इष्ट है । अतएव अनुमान प्रयोग के समय धर्म से युक्त पक्ष साध्य बन जाता है । तात्पर्य यह है कि पर्वत प्रसिद्ध है, अग्नि भी सिद्ध है, किन्तु अग्निमान् पर्वत सिद्ध नहीं है, अतः वही साध्य होना चाहिए ।